*कुकुभ छन्द- विधान
*(१६-१४ यति / अंत मा दो गुरु)*
डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा (सम-सम चरन मा) आखिर मा २ बड़कू(गुरु)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – ३० ,
बिसम चरन मा मातरा – १६ , सम चरन मा मातरा- १४ मातरा मा
यति / बाधा – १६, १४ मातरा मा
*उदाहरण*
*बिनती (कुकुभ)*
बेटा दुलरू बनिस बिदेसी, जब पढ़-लिख डारिस ज्यादा
रद्दा देखत-देखत मरगिन , दुलरू के दादी - दादा ।।
सपनावत होही जब वो हर, तब कइसे लागत होही
कभू ददा-दाई के सुरता , का ओला आवत होही ।।
कोरा-मा दाई के खेलिस , बाढ़िस बइठ मोर काँधा
काँधा देवइया के सुरता मा फूटत हे मन-बाँधा ।।
नान्हेंपन के खई-खजानी , आमा डार झुलै झूला
कोन जनी सुरता होही का , हमर मयारू दुलरू ला ।।
गोबर लीपे अँगना - खोली , तुलसी के पावन चौंरा
छानी-मा फुदकत गौरैया , बखरी-मा गावत भौंरा ।।
छानी ऊपर कोंहड़ा-रखिया , बारी - मा झूलत खीरा
हमर मुहाटी मया - दया ला, देख नहीं खुसरिस पीरा ।।
ऊसर मूसर जाँता जतरी , ढेंकी माढ़य परछी मा
महूँ चलाहूँ ढेंकी कहिके , धान लाय वो चुरकी मा ।।
चुरपुर अम्मट लागय तबले, चुचुर चुचुर चुचुरै लाटा
छोड़ खिलौना डब्बा - डब्बी अउ खेलै लकड़ी-फाटा ।।
गाँव मुहल्ला के लइका सँग, खेलै वो धुर्रा-माटी
गिल्ली-डंडा छुवा-छुवौवल , रेस-टीप भौंरा-बाँटी ।।
नान-नान कतको ठन सुरता , झूलत हे आँखी-आँखी
उड़के भेंट करी आ जातेंव , मोर कहूँ होतिस पाँखी ।।
ना कोन्हों संदेसा आइस , ना कोन्हों चिठिया पाती
जीयत जागत मा आ जातिस, हमर जुडा जातिस छाती ।।
पाँच बछर के बेर ढरक गे , लगे अगोरा जिवलेवा
कभू हमर बिनती सुन लेही, करत हवन ठाकुर सेवा ।।
*अरुण कुमार निगम*
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