विश्व पुस्तक दिवस पर छंदबद्ध कविता
बरवै छंद........
बिषय..............पोथी
पोथी पतरा पढ़लौ, मिलही ज्ञान।
धरम करम ला जानव,पावव मान।
पोथी गंगा गीता,लगय पुरान।
चार धाम कस जानव, देव समान।
बिनहा उठ मुख देखव, पोथी लान।
काम सफल होवय सब,.सुख सम्मान।
रोज पढ़व पोथी ला, पावव ज्ञान।
संस्कार बनय घर मा,.राखव ध्यान।
भगवत दर्शन पावव, ब्रम्ह समान।
मधुरस कस रस घोरव, कर गुणगान।
पोथी पतरा के कर ,झन अपमान।
वेद ज्ञान होवय जे, मिलथे मान।
पंडि़त पोथी बाचय,.सुनय सुजान।
ज्ञान बात के प्रवचन,.सुन लौ ध्यान।
पोथी घर मा राखव,.जे संस्कार।
भगवान बिराजय गा,पा उपहार।
शक शंका मइला ला, करथे दूर।
पोथी अनमोल लगय, आँख म घूर।
सुधर जही जिनगी हा,पढ़ ले पाठ।
पोथी मा ज्ञान भरे, कतको साठ।
पाप धोय पोथी हा,, झन कर देर।
पुण्य भाग जाघी गा, देर सबेर।
*धनेश्वरी सोनी गुल बिलासपुर*✍️
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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज
2212 2212, 2212 2212
विषय - पुस्तक
महिमा बतावँव का सखा,पुस्तक हवै बड़ काम के।
जम्मों भराए ज्ञान हे,गीता रमायन नाम के।।
इतिहास देखव खोल के,सुग्घर दिखावै आज जी।
पुरखा जमाना के सबो,पढ़ लौ लिखाए काज जी।।
सरकार के सब काम के,लेखा घलो पुस्तक कथे।
कानून चलथे देश मा,सब नीति मन हा जी रथे।।
कविता कहानी गीत ला,सुग्घर सबो पढ़ लौ बने।
खेती किसानी काम के,रद्दा सबो गढ़ लौ बने।।
सब जानकारी विश्व के,पाथे अबड़ जी ज्ञान ला।
जिनगी बनाथे पढ़ इहाँ,रखथे अपन ईमान ला।।
सब लोक दरशन हा घलो,होथे पढ़े ले आज जी।
होके सबो शिक्षित इहाँ, करथे बने सब काज जी।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*हरिगीतिका छंद*
*विषय-पुस्तक*
पुस्तक बने पढ़लौ तुमन, येमा रथें सब ज्ञान हा।
जिनगी जिये के ढंग अउ, मिलथें सबो ला मान हा।।
रद्दा बताथे सत्य के, अउ नीति के सब गोठ गा।
येहा बना देथे बने, जिनगी सबो के पोठ गा।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
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मीता अग्रवाल: कुंडलियाँ छंद
पुस्तक
(1)
पुस्तक ले मिलथे सदा, सबला सुग्घर ज्ञान।
आखर आखर बाच के, गुणी करय संधान ।
गुणी करय संधान,खोजथे ज्ञान उजाला।
करिया आखर भैस,लगय आखर मति भाला ।
गुणव मधुर के गोठ,कान ले सुनलव दस्तक ।
पढव ध्यान ले रोज,खजाना होथे पुस्तक।।
(2)
पुस्तक मनखे के सदा, सच्चा होथे मित्र।
सुख-दुख हर-पल साथ दे, जिनगी पट चलचित्र।
जिनगी पट चलचित्र, होत हे सच्चा नायक।
संग रहय सद ज्ञान,साधना बड सुखदायक।
गुनय मधुर ये गोठ,मान दे ऊचा मस्तक।
ज्ञान वान विद्वान, बनाथे संगी पुस्तक।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर
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पुस्तक-विष्णुपद छंद
सार हवय जी इही जगत मा, पुस्तक जे पढ़थे।
ज्ञान जोत के फइलत रहिथे, राह नवा गढ़थे।।
पार लगाथे भवसागर ले, दुख पीरा हरथे।
मन अँधियारी मेट भगाथे,मनखे तब तरथे।।
कभू जाय नइ बिरथा संगी, विद्या पुस्तक के।
मान बढ़ाथे दुनिया मा जी,सबके मस्तक के।।
अलख जगाथे ज्ञान जोत के, विपदा ला हरथे।
पढ़के पुस्तक भटकत मनखे, राह सही धरथे।।
गागर मा सागर ये कहिथे, ज्ञान अबड़ मिलथे।
किस्मत गढ़थे योग बदलथे, पढ़के मन खिलथे।।
विजेंद्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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हरिगीतिका छंद
विषय-पुस्तक
पुस्तक पढौ ज्ञानी बनौ,कहिथे सबो विद्वान जी।
शिक्षा मिले संस्कार के, बोले गुणी इंसान जी।
आशीष हो भगवान के, खुलथे तभे तकदीर हा।
जग मा मिले पहिचान जी,करथे करम जब वीर हा।।
पढ़के बने पोथी इहाँ, बाँटव तुमन अब ज्ञान ला।
रद्दा नवा गढ़हू तभे,पाहू सुघर सब मान ला।
तब साज सजही माथ मा,रचहू नवा इतिहास जी।
मिलही सदा आशीष तब,जिनगी बने उजवास जी।।
संगीता वर्मा भिलाई छत्तीसगढ़
गुरू देव मन ला सादर पायलागी
ReplyDeleteछंदछटा म सुग्घर संकलन बर सब गुणी साधक भैया दीदी ल प्रणाम।
ReplyDeleteपुस्तक के महत्व बतावत सुग्घर छंद संग्रह
ReplyDeleteसुग्घर ज्ञानवर्धक छंद संकलन बर बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छन्द संकलन, बधाईयाँ
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