विधान- ( लावणी छंद)
पाछू के दू छन्द कुकुभ, अउ ताटंक के विधान मा एक्के अंतर हे।
कुकुभ मा पद के अंत 2 गुरु
ताटंक मा पद मा अंत 3 गुरु
*अनिवार्य* होथे।
आज इही प्रकृति के तीसर छन्द ला जानव -
*लावणी छन्द*
.…................
विधान -
पद के संख्या - 2
चरण संख्या - 4
तुकान्तता - प्रत्येक दू पद मा
सम चरण के अंत - 1 गुरु या 2 लघु लेकिन अंतिम मा चौकल आना *अनिवार्य* हे।
माने सम चरण के अंत -
1,1,1,1 या 2,1,1 या 1,1,2 से हो सकथे।
उदाहरण -
(1)
लिखव लावणी छन्द आज गा, अउ सबके मन हर *(षावव*।
सोला चउदा मा यति देवव, मन मा सुग्घर लय *(गावव)*।।
(2)
इही लावणी ला कतको झन, मिश्रित छन्द घलो *(कहिथें)*।
अंत छोड़ के बाकी लक्षण, कुकुभ छन्द जइसे *(रहिथें)*।।
(3)
चेत लगा के सीखव भइया, तन मन ला कर दौ *(अरपन)*
छन्द तुम्हर पहचान बनाही, हिरदे के बनही *(दरपन)*
लावणी छन्द के पहिली उदाहरण के अंत 211 ले, दूसर उदाहरण के अंत 112 ले अउ तीसर उदाहरण के अंत 1111 से करे हँव। ये तीनों प्रकार के अंत मान्य होथे।
*लावणी छन्द ला मिश्रित छन्द घलो कहे जाथे*
अरुण कुमार निगम
No comments:
Post a Comment