विधान- घनाक्षरी छन्द –
घनाक्षरी ला कवित्त घलो कहिथें. येहर बारनिक छन्द आय फेर येमा गन वाले बन्धन नइ रहाय. एमा मातरा नइ गिने जावय. बरन गिने जाथय. आधा बरन घलो नइ गिने जाये. ४ डाँड़ के घनाक्षरी मा ३०, ३१, ३२ या ३३ बरन होथे. बरन के गिनती अनुसार येखरो भेद रहिथे. ३० अउ ३३ बरन वाले घनाक्षरी छन्द मा लय वतिक गुरतुर नइ लागय, ते पाय के ३१ अउ ३२ बरन के घनाक्षरी छन्द ज्यादा लिखे गे हे. वहू मा मनहरन घनाक्षरी अउ रूप घनाक्षरी छन्द ज्यादा लोकप्रिय होय हें.
*मनहरण घनाक्षरी* – १६,१५ बरन मा यति (हर दांड मा कुल बरन ३१) अउ आखिर मा बड़कू माने गुरु आथे.
( ८,८,८,७ के यति अउ आखिर मा नान्हें-बड़कू (लघु,गुरु) आये ले ज्यादा अच्छा माने जाथे.)
विधान =8-8-8-7 (अंत मा लघु गुरु)
*विषय - भ्रष्टाचार*
भ्रष्टाचार बाढ़े देखौ,सुरसा वो ठाढ़े देखौ,
जघा-जघा मनखे हा,होवै हलकान गा।
बिन पैसा काम नहीं,आसरा के नाम नहीं,
चपरासी घलो देखौ,होगे बइमान गा।।
आफिस मा बाबू बैठे,साहब हा मेंछा ऐंठे,
रिश्वत के बिना कुछु,काम न आसान गा।
मनखे हा भटकथे,भ्रष्टाचारी झटकथे,
होवत लाचार सबो, छूटथे परान गा।।
अरुण निगम
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