Followers

Tuesday, April 19, 2022

विधान - ताटंक छन्द*

 *विधान - ताटंक छन्द*


ताटंक छन्द   (१६-१४ / अन्त तीन गुरु)


डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४


तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा (सम-सम चरन मा) आखिर मा ३ बड़कू माने गुरु,गुरु,गुरु


हर डाँड़ मा कुल मातरा – ३० ,


बिसम चरन मा मातरा – १६  , सम चरन मा मातरा- १४  मातरा मा  


यति / बाधा – १६, १४ मातरा मा


उदाहरण -


छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया (ताटंक छन्द)



छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया , कहिथैं जी दुनियाँ वाले

झारा-झार नेवता भइया , आ चटनी-बासी खा ले ।


बाँट दिहिन आये पहुना ला , अपन सबो खेती-बारी

बड़ सिधवा हें लोग इहाँ के, बिल्कुल भोला-भंडारी ।


पहुना के सतकार करे बर, देखिन नहीं अपन पोटा

कतको झन राजा कस बनगें, आय रहिन धर के लोटा ।


पीरा के बिख ला पी-पी के ,खुस हें अपन किसानी मा

इनकर एक्को कुरिया नइ हे, रइपुर के रजधानी मा ।


खेत-खार खलिहान बियारा, इहिंचे उमर पहागे हे

तिही पाय के बंगला-कोठी, इनमन सदा तियागे हे ।


खून पसीना एक करिन तब, नवा राज सिराजाये हें

पहुना मन सिंघासन बइठिन , तब्भो नहीं रिसाये हें ।


नागर बइला गैती रापा, जिनगी के संगवारी हे

साभिमान ला नहीं जगावैं, ये कइसन लाचारी हे ।


हितवा मितवा सब झन आवौ , इन ला आज जगाना हे

धान-कटोरा के मालिक ला, राजा सहीं बनाना हे ।     


*(इहाँ छत्तीसगढ़िया शब्द सही वर्तनी मा लिखाये हे फेर उच्चारण छत्तिसगढ़िया करे मा लय आही, मात्रागणना मा घलो छत्तिसगढ़िया, मानना पड़ही, ए जानबूझ के करे गलती ला अपवाद मानके स्वीकारना पड़ही)*


*अरुण कुमार निगम*

No comments:

Post a Comment