*विधान - ताटंक छन्द*
ताटंक छन्द (१६-१४ / अन्त तीन गुरु)
डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा (सम-सम चरन मा) आखिर मा ३ बड़कू माने गुरु,गुरु,गुरु
हर डाँड़ मा कुल मातरा – ३० ,
बिसम चरन मा मातरा – १६ , सम चरन मा मातरा- १४ मातरा मा
यति / बाधा – १६, १४ मातरा मा
उदाहरण -
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया (ताटंक छन्द)
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया , कहिथैं जी दुनियाँ वाले
झारा-झार नेवता भइया , आ चटनी-बासी खा ले ।
बाँट दिहिन आये पहुना ला , अपन सबो खेती-बारी
बड़ सिधवा हें लोग इहाँ के, बिल्कुल भोला-भंडारी ।
पहुना के सतकार करे बर, देखिन नहीं अपन पोटा
कतको झन राजा कस बनगें, आय रहिन धर के लोटा ।
पीरा के बिख ला पी-पी के ,खुस हें अपन किसानी मा
इनकर एक्को कुरिया नइ हे, रइपुर के रजधानी मा ।
खेत-खार खलिहान बियारा, इहिंचे उमर पहागे हे
तिही पाय के बंगला-कोठी, इनमन सदा तियागे हे ।
खून पसीना एक करिन तब, नवा राज सिराजाये हें
पहुना मन सिंघासन बइठिन , तब्भो नहीं रिसाये हें ।
नागर बइला गैती रापा, जिनगी के संगवारी हे
साभिमान ला नहीं जगावैं, ये कइसन लाचारी हे ।
हितवा मितवा सब झन आवौ , इन ला आज जगाना हे
धान-कटोरा के मालिक ला, राजा सहीं बनाना हे ।
*(इहाँ छत्तीसगढ़िया शब्द सही वर्तनी मा लिखाये हे फेर उच्चारण छत्तिसगढ़िया करे मा लय आही, मात्रागणना मा घलो छत्तिसगढ़िया, मानना पड़ही, ए जानबूझ के करे गलती ला अपवाद मानके स्वीकारना पड़ही)*
*अरुण कुमार निगम*
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