*पाठ-9*
- *दोहा छन्द*
दोहा के डाँड़ के मात्रा गणना के अभ्यास मा आप ध्यान देहू त कुछ *विशेषता* नजर आही -
*दोहा मा दू डाँड़ होथे*
*हर डाँड़ मा 13 मात्रा के बाद यति होथे* जेखर कारन डाँड़ हर दू चरण मा बँट जाथे।
*दूसर चरण 11 मात्रा के होथे* माने *दोहा के हर डाँड़ मा चौबीस मात्रा होथे*
ये हिसाब ले दोहा मा *कुल चार चरण* होथे।
पहला अउ तीसरा चरण 13 मात्रा के होथे। एला विषम चरण कहे जाथे।
दूसर अउ चौथा चरण 11 मात्रा के होथे। एला सम चरण कहे जाथे।
दोहा के हर डाँड़ के अंत मा गुरु, लघु मात्रा होथे। ये बात ला अइसनो बोल सकथव कि दोहा के सम चरण के अंत 2,1 से होथे।
विषम चरण के अंत लघु-गुरु से होथे माने 1,2 से होथे। विषम चरण कुल 13 मात्रा के होथे अउ अंत 1,2 से होथे एखर मतलब यहू हे कि *दोहा के विषम चरण के ग्यारहवाँ मात्रा लघु होना अनिवार्य हे*
तुकान्त - कल तक के अभ्यास के दोहा मा ध्यान देहू त पाहू कि
*दोहा के दूनों डाँड़ मन आपस मा तुकान्त रथे*
ये पाठ ला ध्यान देके पढ़व अउ नोटबुक मा नोट कर लेवव। *मन मा कहूँ शंका होही त पूछव*।
शंका पाठ मा बताये जानकारी के बारे मा होना चाहिए ।
अब दोहा के अभ्यास चालू होने वाला हे।
हर साधक के नियमित उपस्थिति अनिवार्य रही।
कक्षा ला साधना मान के समर्पित होके सीखना हे। अगर अइसे लागही कि कोनो साधक टाइम पास बर जुड़े हे, वो कक्षा ले लेफ्ट करे जा सकथे। संगेसंग जउन प्रशिक्षक उदासीन दिखही वहू लेफ्ट करे जा सकथें।
साधना बर समर्पण जरुरी होथे। समय सबके कीमती होथे। बिना अनुशासन के कोनो साधना पूरा नइ हो सके।
*आज हर क्षेत्र मा मठाधीशी चलथे, साहित्य के क्षेत्र घलो ये बीमारी ले अछूता नइये। बड़े अउ नामी कवि मन भाव नइ देवैं। नवा कवि ला हाथ धरके सिखैया गिनती के मिलहीं। बजार मा कविता सीखे बर किताब नइ मिलही। छन्द बर जउन किताब मिलही वो अपर्याप्त हे। किताब पढ़ के मनखे ज्ञानी हो जातिन त स्कूल, कालेज के का जरुरत रहितिस*?
ज्ञान बर अभ्यास अउ साधना जरुरी होथे। मोला विश्वास हे कि ये सत्र के साधक मन समर्पित होके छन्द साधना करहीं अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ बनाहीं।
ये सत्र मा समर्पित प्रशिक्षक मन आप ला छन्द सीखे बर सहयोग करहीं। हम सब प्रशिक्षक, आप सब के उज्ज्वल भविष्य के कामना करत हन।
*दोहा के संबंध मा कोनो भी प्रकार के शंका हो त बेझिझक पूछव*
अरुण निगम
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