*आल्हा छन्द-विधान*
*(१६-१५ / बड़कू, नान्हें)*
डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा (सम-समय चरन मा) आखिर मा बड़कू, नान्हें (२,१)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – ३१ ,
बिसम चरन मा मातरा – १६ , सम चरन मा मातरा- १५ मातरा मा
यति / बाधा – १६, १५ मातरा मा ,
खास - *वइसे त आल्हा छन्द मा अतिशयोक्ति अलंकार जरूरी होथे, फेर बिना अतिशयोक्ति अलंकार प्रयोग के घलो लिखे मा कोनो बुराई नइये*
*उदाहरण* -
*मँय हलधरिया सोन उगाथवँ (आल्हा छन्द)*
महूँ पूत हौं भारत माँ के, अंग-अंग मा भरे उछाँह
छाती का नापत हौ साहिब, मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥
देख गवइहाँ झन हीनौ तुम, अन्तस मा बइठे महकाल
एक नजर देखौं तो तुरते, जर जाथय बइरी के खाल ॥
सागर-ला छिन-मा पी जावौं, छर्री-दर्री करौं पहार
पट-पट ले दुस्मन मर जावैं, मन-माँ लावौं कहूँ बिचार ॥
भगत सिंग के बाना दे दौ, अंग-भुजा फरकत हे मोर
डब-डब डबकै लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥
मँय हलधरिया सोन उगाथौं , बखत परे धरथौं बन्दूक ॥
उड़त चिरैया मार गिराथौं , मोर निसाना बड़े अचूक ॥
बजुर बरोबर हाड़ा-गोड़ा, बीर दधीची के अवतार
मँय अर्जुन के राजा बेटा, धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥
चितवा कस चुस्ती जाँगर-मा, बघुआ कस मोरो हुंकार
गरुड़ सहीं मँय गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥
अड़हा अलकरहा दिखथौं मँय , हाँसौ झन तुम दाँत निपोर
भारत-माता के पूतन ला, झन समझौ साहिब कमजोर ॥
*अरुण कुमार निगम*
No comments:
Post a Comment