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Tuesday, April 19, 2022

आल्हा छन्द-विधान*

 *आल्हा छन्द-विधान*

 *(१६-१५ / बड़कू, नान्हें)*


डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४ 


तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा (सम-समय चरन मा) आखिर मा बड़कू, नान्हें (२,१)


हर डाँड़ मा कुल मातरा – ३१ , 


बिसम चरन मा मातरा – १६  , सम चरन मा मातरा- १५  मातरा मा  


यति / बाधा – १६, १५ मातरा मा  , 


खास - *वइसे त आल्हा छन्द मा अतिशयोक्ति अलंकार जरूरी होथे, फेर बिना अतिशयोक्ति अलंकार प्रयोग के घलो लिखे मा कोनो बुराई नइये*


*उदाहरण* - 


*मँय  हलधरिया सोन उगाथवँ  (आल्हा छन्द)*


महूँ पूत हौं भारत माँ  के, अंग-अंग मा भरे  उछाँह 

छाती का नापत हौ साहिब, मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥ 


देख गवइहाँ झन हीनौ  तुम, अन्तस मा बइठे महकाल  

एक नजर देखौं  तो तुरते,  जर जाथय बइरी के खाल  ॥ 


सागर-ला छिन-मा पी जावौं,  छर्री-दर्री करौं पहार  

पट-पट ले दुस्मन मर जावैं, मन-माँ लावौं  कहूँ बिचार ॥  


भगत सिंग के बाना दे दौ, अंग-भुजा फरकत हे मोर 

डब-डब  डबकै लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥ 


मँय  हलधरिया सोन उगाथौं , बखत परे धरथौं बन्दूक ॥ 

उड़त चिरैया  मार गिराथौं , मोर निसाना बड़े अचूक ॥    


बजुर बरोबर हाड़ा-गोड़ा, बीर दधीची के अवतार 

मँय  अर्जुन के राजा बेटा, धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥ 


चितवा कस चुस्ती जाँगर-मा, बघुआ कस मोरो हुंकार 

गरुड़ सहीं मँय  गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥  


अड़हा अलकरहा दिखथौं मँय , हाँसौ  झन तुम दाँत निपोर 

भारत-माता के पूतन ला, झन समझौ  साहिब कमजोर ॥


*अरुण कुमार निगम*

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