विधान-जल-हरन घनाक्षरी
१६,१६ बरन मा यति (हर दांड मा कुल बरन ३२) अउ आखिर मा नान्हें , नान्हें माने लघु , लघु आथे (८,८,८,८ आखिर मा नान्हें, नान्हें)
*उदाहरण*
*रखिया बरी (जल-हरण घनाक्षरी)*
(1)
रखिया के बरी ला बनाये के बिचार हवे
धनी टोर दूहू छानी फरे रखिया के फर.
उरिद के दार घलो रतिहा भिंजोय दूहूँ
चरिह्या-मा डार , जाहूँ तरिया बड़े फजर
दार ला नँगत धोहूँ चिबोर - चिबोर बने
फोकला ला फेंक दूहूँ , दार दिखही उज्जर.
तियारे पहटनीन ला आही पहट काली
सील लोढ़हा मा दार पीस देही वो सुग्घर।।
(2)
मामी , ममा दाई , मटकुल मोर देवरानी
आही काली घर मोर बरी ला बनाये बर.
काकी ह कहे हे काली करो दूहूँ रखिया ला
कका काकी दुनो झिन खा लिहीं इही डहर.
रखिया के बरी के तियारी हे तिहार कस
सबो सकलाये हवैं घर लागथे सुग्घर.
कोन्हों बैठें खटिया मा, कोन्हों बैठे पीढ़्हा मा
भाँची भकली तँय माची, लान दे न काकी बर।।
(3)
फेंट - फेंट घेरी - बेरी , कइसे उफल्थे बरी
पानी मा बुड़ो के देखे , ममा दाई के नजर.
टुप - टुप बरी डारैं , सबो झिन जुर मिल
लुगरा बिछा के बने , फेर पर्रा ऊपर.
पीसे दार बटकी मा , अलगा के मंडलीन
तात - तात बरा ला , बनात हे खवाये बर.
लाल मिरचा लसुन पीस के पताल संग
चुरपुर चटनी बरा के संग खाए बर ।।
(4)
दार तिल्ली अउ बीजा रखिया के सानथवौं
पर्रा भर बिजौरी बना लेहूँ सुवाद बर
नान्हे बेटी ससुरार ले संदेसा भेजे हावे
दाई पठो देबे बरी -बिजौरी दमाद बर.
रखिया के बरी अऊ बिजौरी हमार इहाँ
मइके के हाल चाल के पहुँचाथे खबर
बरी – बिजौरी के अउ कतका बखान करौं
दया-मया , नाता-रिस्ता, ला बढ़ाथे ये सुग्घर ।।
अरुण कुमार निगम
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