चित्र आधारित छंदबद्ध रचना- खेड़हा
*अमृतध्वनि छंद--- खेड़हा (जरी)*
गरमी दिन मा खेड़हा, भारी पाथे मान।
मिलके मही मसूर सॅंग, गजब मिठाथे जान।।
गजब मठाथे, जान गोंदली, स्वाद बढ़ाथे।
जरी खेड़हा, किसम किसम निज, नाम बताथे।।
भरे गुदा हे, अउ सुभाव बड़, सुग्घर नरमी।
बढ़े भाव बड़, देखे मौसम, आगे गरमी।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा
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: दिगपाल छंद
हरे साग ये देशी, सब मौसम मा मिलथे।
बनथे अम्मटहा जब, तन मन सुग्घर खिलथे।।
चना दार सँघरा मा, येहा गजब मिठाथे।
जुड़हा पाचुक गुण हा, खाबे तभे जनाथे।।
जड़ पाना डारा मा, भरे विटामिन बड़ गा।
बारो महिना खावव, हिला डुला के धड़ गा।।
अम्मटहा मा राँधव, जरी साग तरकारी।
चुहक चुहक के खावव, गुण एखर हे भारी।।
विजेंद्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
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] बोधन जी: दोहा - खेड़हा जरी
बने मिठाथे खेड़हा,हरियर भाजी खाव।
अम्मटहा सुग्घर लगे,मजा जरी के पाव।।
गुणकारी भाजी बने,गरमी मा बेचाय।
चना दार के संग मा,स्वाद गजब के आय।।
बोधन राम निषादराज✍️
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गीतिका छंद (खेड़हा जरी)
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साग भाजी छतिसगढ़िया, मा जरी बड़ नाम के।
खेड़हा पेड़ा बरोबर, हरय मथुरा धाम के। ।
घाम के दिन जी जुड़ावय,खवइया सब लोग के।
आय पहुना घलो पावय, मजा सुघ्घर भोग के। ।
तेल अउ कमती मसाला, ए जरी हा माँगथे।
दार तिवरा संग राँधे, गजब गुरतुर लागथे। ।
राँध अम्मटहा बने तँय , बस मही ला डार के।
भात बासी संग खाले, जीभ ला चटखार के। ।
सोज चिक्कन हरा लँभरी, जरी के बिरवा जगे।
खेत घर बखरी उगै ए, जतन पानी कम लगे। ।
आम मनखे सरल सिधवा,कस जरी बड़ काम के ।
स्वाद मा गुरतुर गजब के, भले ए कम दाम के । ।
दीपक निषाद -लाटा (बेमेतरा)
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कुण्डलिया-खेड़हा
खावव कोंवर खेड़हा,सबले बढ़िया साग।
अबड़ मिठाथे दार मा,गावव खा के राग।।
गावव खा के राग,अमटहा म चभक जाथे।
शहरी खोजत गाँव,हाट लेहे बर आथे।।
भाजी बनथे पान,मजा ला मनखे पावव।
पइसा धर के हाथ,बिसा के मनखे खावव।।
राजकिशोर धिरही
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अम्मट राँधा दार मा,कतका सुघर मिठाय।
हरियर हरियर खेडहा,देख जीव ललचाय।
मसरी भाटा संग मा, देवौ सुघर बघार।
दही मही अमली कुटा,खावव पोठ डकार।
*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️✍️
बिलासपुर
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[*खेड़हा--उल्लाला छंद*
अलवा जलवा झन जानहू, जब्बर होथे खेड़हा।
पहलवान जइसे हो जथे, येला खाके रेड़हा।।
होथे लुदलुदहा केंवची, हरियर एकर डार हा।
सादा रइथे मूली सहीं,एकर जर के सार हा।।
नयन जोत अच्छा बढ़ जथे, फुंडा होथे गाल हा।
जरी खाय ले ताकत मिलै,बढ़थे लुसकी चाल हा।।
मिलै विटामिन प्रोटीन सब, अउ रेसा भरमार हे।
वोकर बर हे वरदान ये, जेला पेट विकार हे।।
अमटाहा मही लगार मा,घुघरी संग मसूर के।
अबड़ मिठाथे जी खेड़हा, चपचपहा ये चूर के।।
चुहके मा आथे बड़ मजा, जरी झोर मा बोर के।
चाही हम ला तो राँधना, एकर भाजी टोर के।।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद
गुरतुर लागे खेड़हा, संग चना के दार।
मही दही में राँध ले,खाले पलथी मार।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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विषय____ खेड़हा (जरी)
छंद___ दोहा
जरी कोंहड़ा राँध के, दही मही ला डार।
गजब मिठाथे साग हा, चपचपहा रसदार।।१
चना दार अउ खेड़हा, मनसरवा ला भाय।
चूहक-चूहक झोर ला, मन भरत ले खाय।।२
घुघरी मा राहेर के, भाजी जरी मिठाय।
रमकलिया आलू चना, मन ला नइ तो भाय।।३
चिक्कट सादा जर जरी, चूचर-चूचर खाव।
अउ बीमारी पेट के, सब झन दूर भगाव।।४
पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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: खेड़हा (भुजंग प्रयात छंद)
अबड़ पुसटई ये जरी खेड़हा के।
सबन ला सुहाथे मही मा रँधा के।
ददा हाट ले लाय हावय बिसा के।
जुरी के जुरी केरियल मा दबा के।
बना ए जुहर भात भाजी म खाबो।
जरी ओ जुहर हम मही मा बनाबो।
अउर साग गरमी म मुँह टार देथे।
हमर खेड़हा दू जुहर तार देथे।
-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
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: *छप्पय छंद* विषय :- खेंड़हा
अबड़ मिठाथे साग, खेंड़हा के सँगवारी ।
चिटिक मही ला डार, स्वाद बढ़ जाथे भारी।।
पौष्टिकता भरपूर, समाये जेमा रहिथे।
कमजोरी ला दूर, भगाथे मोहन कहिथे ।।
कोंवर पाना टोरके,भाजी राँधव साग जी।
कई किसम के रोग हर ,पल्ला जाथे भाग जी।।
छंदकार
मोहन लाल वर्मा( छंद साधक सत्र 03)
ग्राम अल्दा तिल्दा रायपुर (छत्तीसगढ़)🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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