: *दोहा के अभ्यास के पहिली, जरुरी बात* -
1 - कभी भी मात्रा मिलाये बर मूल शब्द के मात्रा ला कम-ज्यादा नइ करना हे। जइसे पानी ले पानि, माटी ला माटि, दूर ला दुर, टीपा ला टिपा नइ करे जा सके।शब्द ला ओखर मूल प्रचलित उच्चारण अनुसार लिखना हे।
2 - दोहा के कोई भी चरण के शुरुवात *तीन अक्षर*(4 मात्रा) वाले अइसन शब्द से नइ करना हे जेखर मात्रा 121 माने लघु, गुरु, लघु हवे । अइसन शब्द ला जगण कहे जाथे। किसान, मकान, दुकान, जलाव, कनेर, कुम्हार, रमेश, सुरेश, बिहान- ये सब शब्द जगण आँय।
3. दोहा के कोनो चरण पाँच मात्रा वाले शब्द से नइ करना चाही, लय बाधित होथे। लोहार (221), डोंड़का (212), दसेरा (122), समरपन (11111), सुहागिन (1211), अँधियार (1121), बिहिनिया (1112), अइसन 5 मात्रा वाले शब्द चरण के शुरू मा नइ आना चाही।
दोहा दू डाँड़ के छन्द आय। देखे मा बहुत सरल होथे फेर सबसे कठिन छन्द आय।
कठिन ये पाय के कि अपन बात ला कहे बर दुये लाइन मिलथे। दू डाँड़ मा जतिक गहरा भाव लाहू, जतिक कसावट लाहू, दोहा वतके श्रेष्ठ बनही।
हर दोहा मा *घाव करे गंभीर* वाले लक्षण होना चाहिए। इहाँ घाव के मतलब चोट से नइये, भाव के गहराई से हे। पढ़ने वाला अउ सुनने वाला वाह कहे बर मजबूर हो जाना चाहिए। ये स्थिति अभ्यास करत करत मा आही।
*दोहा लिखे के पहिली जानव*
लय, छन्द के आत्मा होथे। सही शब्द संयोजन के बिना लय नइ आवै। खाली 13,11 मात्रा के गिनती करे ले दोहा नइ बनय।
हमर लिपि "देवनागरी-लिपि" कहे जाथे। ये लिपि के एक खासियत यहू हे कि सम मात्रा के बाद , सम मात्रा आये ले, या विषम मात्रा के बाद विषम मात्रा आये ले लय बनथे। एला गणित मा समझे जा सकथे।
(1) जब दू सम संख्या के जोड़ होथे तब परिणाम सम संख्या मा आथे।
2 + 2 = 4 (सम संख्या)
(2) जब दू विषम संख्या के जोड़ होथे तब भी परिणाम सम संख्या मा आथे।
3 + 3 = 6 (सम संख्या)
छन्द लिखत समय इही बात के ध्यान रखना हे कि त्रिकल शब्द के बाद हमेशा त्रिकल शब्द आये।*दू त्रिकल शब्द के बाद एक द्विकल शब्द रखना जरूरी होथे।
माने मात्राबाँट 3 + 3 + 2 = 8 बने।
वइसने द्विकल शब्द के बाद द्विकल शब्द आये। दू द्विकल शब्द मिल के चौकल बनाथें। चौकल के बाद चौकल आना जरूरी होथे।
माने मात्राबाँट 4 + 4 = 8 बने।
*ये मात्राबाँट हर चरण बर लागू होही*
अरुण निगम
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